जड़ ......जीवन
पार करनी थी
इक नदी
हाथ थामकर
पर ये क्या
वो न कृष्ण बन सके
न सुदामा
और मैं ...... नदी
बस बहती जा रही हूँ
अंतर
न प्रवाह में हुआ न
अनवरतता
की आदत छूटी
इसी ने पहाड़ों,
दर्रों ,चट्टानों तक को
बता दिया कि
वो सब
जड़ हैं सिर्फ़ जड़
और मैं ..... मैं जीवन !!!
@संगीता श्रीवास्तव 'सुमन'
सुंदर!
ReplyDeleteजी बहुत आभार
Deleteबहुत खुब जी नमन
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