Tuesday, 7 April 2020

कविता तुम जीवन हो



तुम कहना 
तुम लिखना
कल औरआज के पन्नों पर 
नदी की धार जैसा 

समय के कपाल पर 
तुम लिखना जो नहीं लिखा गया 

कविता तुम्हारी साँस 
अवरूद्ध नहीं होनी चाहिए
तुम साँस रोककर भी जिंदा रहना 

हड्डियों में 
श्वांस तंत्रों में 
क्योंकि तुम ही 
जीवन हो 
तुम ही चेतना हो

एक आहट...

ग़ज़ल......

करनी नैया पार समझ लो 
मौजों को पतवार समझ लो |

ग़म की शाम अगर है गहरी,  
खुशियों का इतवार समझ लो |

ख़ून पसीना बहाने वालों 
क़िस्मत का इज़हार समझ लो |

लुत्फ़ यहां लो खट्टा मिठ्ठा  
अनुभव को आचार समझ लो |

ख़्वाब सजाना तेरे मेरे
आंखों का अधिकार समझ लो | 

कोई निशां नहीं छोड़ा है
क़ातिल को होशियार समझ लो |

साथ चलो अब मिलकर पग पग
समय की इसे पुकार समझ लो |

इज़्ज़त की रोटी की ख़ातिर 
मर मर जाना प्यार समझ लो |

जो गमख़्वार न मीत मिले तो
दुश्मन को ही यार समझ लो |

आशिक़ हो तो ज़ख़्म छुपाओ,
इश्क़ का शिष्टाचार समझ लो |

गुम आँखों में अश्क़ हुए हैं
सुमन इसे मझधार समझ लो |


@संगीता श्रीवास्तव 'सुमन'