तुम कहना
तुम लिखना
कल औरआज के पन्नों पर
नदी की धार जैसा
समय के कपाल पर
तुम लिखना जो नहीं लिखा गया
कविता तुम्हारी साँस
अवरूद्ध नहीं होनी चाहिए
तुम साँस रोककर भी जिंदा रहना
हड्डियों में
श्वांस तंत्रों में
क्योंकि तुम ही
जीवन हो
तुम ही चेतना हो