तुम कहना
तुम लिखना
कल औरआज के पन्नों पर
नदी की धार जैसा
समय के कपाल पर
तुम लिखना जो नहीं लिखा गया
कविता तुम्हारी साँस
अवरूद्ध नहीं होनी चाहिए
तुम साँस रोककर भी जिंदा रहना
हड्डियों में
श्वांस तंत्रों में
क्योंकि तुम ही
जीवन हो
तुम ही चेतना हो
अरे वाह....बहुत बहुत स्वागत है संगीता जी आपका ब्लॉग जगत में।
ReplyDeleteहार्दिक अभिनंदन बहुत प्रसन्नता हो रही है।
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Deleteबहुत आभार आपका
Deleteब्लॉग जगत में स्वागत है
ReplyDeleteसंगीता जी
बहुत सुंदर सृजन
बधाई
बहुत बहुत आभार सर | आपके मार्गदर्शन की सदैव आकाँक्षी ,आशीष बना रहे |
Deleteआभार एवं सादर प्रणाम सर
Deleteलिखने का यह क्रम अनवरत जारी रहे। स्तरीय और रंजक लिखती जाएं आप यही शुभकामनाएं मेरी ओर से।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मनीष
Deleteबहुत आभार मनीष ,,अवश्य आप सबका सहयोग साथ यूँ ही मिलता रहे |
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया आपका
ReplyDeleteकविता तुम्हारी साँस
ReplyDeleteअवरूद्ध नहीं होनी चाहिए
शुभकामनाएँ
सादर...
जी बहुत शुक्रिया आपका ,,, सुमन का प्रणाम स्वीका करें
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