Tuesday 7 April 2020

कविता तुम जीवन हो



तुम कहना 
तुम लिखना
कल औरआज के पन्नों पर 
नदी की धार जैसा 

समय के कपाल पर 
तुम लिखना जो नहीं लिखा गया 

कविता तुम्हारी साँस 
अवरूद्ध नहीं होनी चाहिए
तुम साँस रोककर भी जिंदा रहना 

हड्डियों में 
श्वांस तंत्रों में 
क्योंकि तुम ही 
जीवन हो 
तुम ही चेतना हो

13 comments:

  1. अरे वाह....बहुत बहुत स्वागत है संगीता जी आपका ब्लॉग जगत में।
    हार्दिक अभिनंदन बहुत प्रसन्नता हो रही है।

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    3. बहुत आभार आपका

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  2. ब्लॉग जगत में स्वागत है
    संगीता जी
    बहुत सुंदर सृजन
    बधाई

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    1. बहुत बहुत आभार सर | आपके मार्गदर्शन की सदैव आकाँक्षी ,आशीष बना रहे |

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    2. आभार एवं सादर प्रणाम सर

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  3. लिखने का यह क्रम अनवरत जारी रहे। स्तरीय और रंजक लिखती जाएं आप यही शुभकामनाएं मेरी ओर से।

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    1. बहुत बहुत आभार मनीष

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  4. बहुत आभार मनीष ,,अवश्य आप सबका सहयोग साथ यूँ ही मिलता रहे |

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  5. बेहद शुक्रिया आपका

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  6. कविता तुम्हारी साँस
    अवरूद्ध नहीं होनी चाहिए
    शुभकामनाएँ
    सादर...

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    1. जी बहुत शुक्रिया आपका ,,, सुमन का प्रणाम स्वीका करें

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