Wednesday, 27 May 2020
Thursday, 21 May 2020
हालाते हाज़रा पर मेरी पहली नज़्म ...
*कहाँ खो गई उनकी जादूगरी* ......
कहाँ खो गई उनकी जादूगरी
कहाँ गुम हुई उनकी दीवानगी |
रहेगी कहाँ किसकी दुनिया हसीं
हरिक सू दिखे बस दिखे बेक़सी |
खुशी उनकी रूठी है जैसे कहीं
सफ़र कर रही भूख और बेबसी |
छिनी आज उनसे यहाँ दस्तरस
कुचल ही गई है उन्हें रहबरी |
मिले कोई कैसे ख़बर अब भली
है बैचेन इस वास्ते आदमी |
अजब क़ैद की हमने क़ीमत भरी
खुली आँख देखी गज़ब मयकशी |
कहीं है दुआओं में छूटा जहाँ
सलामत रहे उनकी ही बन्दगी |
करामात है ये खुदा की बड़ी
है करतूत पर फैसले की घड़ी |
झुकाकर नज़र कर इबादत बशर
सज़ा मांग कर तू दुआ ज़िंदगी |
कहाँ खो गई उनकी जादूगरी
कहाँ गुम हुई उनकी दीवानगी |
@संगीता श्रीवास्तव सुमन
*कहाँ खो गई उनकी जादूगरी* ......
कहाँ खो गई उनकी जादूगरी
कहाँ गुम हुई उनकी दीवानगी |
रहेगी कहाँ किसकी दुनिया हसीं
हरिक सू दिखे बस दिखे बेक़सी |
खुशी उनकी रूठी है जैसे कहीं
सफ़र कर रही भूख और बेबसी |
छिनी आज उनसे यहाँ दस्तरस
कुचल ही गई है उन्हें रहबरी |
मिले कोई कैसे ख़बर अब भली
है बैचेन इस वास्ते आदमी |
अजब क़ैद की हमने क़ीमत भरी
खुली आँख देखी गज़ब मयकशी |
कहीं है दुआओं में छूटा जहाँ
सलामत रहे उनकी ही बन्दगी |
करामात है ये खुदा की बड़ी
है करतूत पर फैसले की घड़ी |
झुकाकर नज़र कर इबादत बशर
सज़ा मांग कर तू दुआ ज़िंदगी |
कहाँ खो गई उनकी जादूगरी
कहाँ गुम हुई उनकी दीवानगी |
@संगीता श्रीवास्तव सुमन
Sunday, 17 May 2020
व्यथा एक माँ की ,इंतज़ार एक माँ का
गीत ..... वो बेटा किधर है ....
कड़ी धूप में वो , टपकता पसीना
नहीं बन सका था , किसी का नगीना |
जिसे याद करती माँ , शामो सहर है
वो बेटा किधर है , वो बेटा किधर है ||
लिये इक पुरानी सी , वो शर्ट बैठी
किसी सोच में , बाँह कालर को छूती |
है व्याकुल खड़ी , छलके आँसू बिलखते
कभी माँ ने कोसा , निठल्ला ये कहके ||
जो निकला था आहत, कभी घर नगर से
वो बेटा किधर है , वो बेटा किधर है .......
कि आँचल में लुकछिप सदा, खेलता था
कहाँ है बहुत देर, छिपता नहीं था |
वो अमिया की डाली थकी, राह तकती
पड़ोसी ,वो दादा ,वो मुनिया, भी कहती ||
कहाँ आजकल है , वो कैसी बसर है
वो बेटा किधर है , वो बेटा किधर है .......
तड़पकर जिया माँ का , आजा पुकारे
ग़रीबी भी हँसकर , उसे ही निहारे |
है दो दिन से भूखी, मगर अड़ गई है
घड़ी कैसी जोख़िम की , ये पड़ गई है
कि रेलें चली , ज़िंदगी की डगर है
वो बेटा किधर है , वो बेटा किधर है ......
कि फांके भी करके ,लहू बेचता था
दुआओं में माँ की, गुज़र देखता था |
मगर आज इतना , हुआ दूर कैसे
यही प्रश्न माँ अपने ,ईश्वर से पूछे
बलाएं माँ जिसकी , उतारे नज़र है
वो बेटा किधर है, वो बेटा किधर है ........
@संगीता श्रीवास्तव 'सुमन'
कड़ी धूप में वो , टपकता पसीना
नहीं बन सका था , किसी का नगीना |
जिसे याद करती माँ , शामो सहर है
वो बेटा किधर है , वो बेटा किधर है ||
लिये इक पुरानी सी , वो शर्ट बैठी
किसी सोच में , बाँह कालर को छूती |
है व्याकुल खड़ी , छलके आँसू बिलखते
कभी माँ ने कोसा , निठल्ला ये कहके ||
जो निकला था आहत, कभी घर नगर से
वो बेटा किधर है , वो बेटा किधर है .......
कि आँचल में लुकछिप सदा, खेलता था
कहाँ है बहुत देर, छिपता नहीं था |
वो अमिया की डाली थकी, राह तकती
पड़ोसी ,वो दादा ,वो मुनिया, भी कहती ||
कहाँ आजकल है , वो कैसी बसर है
वो बेटा किधर है , वो बेटा किधर है .......
तड़पकर जिया माँ का , आजा पुकारे
ग़रीबी भी हँसकर , उसे ही निहारे |
है दो दिन से भूखी, मगर अड़ गई है
घड़ी कैसी जोख़िम की , ये पड़ गई है
कि रेलें चली , ज़िंदगी की डगर है
वो बेटा किधर है , वो बेटा किधर है ......
कि फांके भी करके ,लहू बेचता था
दुआओं में माँ की, गुज़र देखता था |
मगर आज इतना , हुआ दूर कैसे
यही प्रश्न माँ अपने ,ईश्वर से पूछे
बलाएं माँ जिसकी , उतारे नज़र है
वो बेटा किधर है, वो बेटा किधर है ........
@संगीता श्रीवास्तव 'सुमन'
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