Thursday, 23 April 2020

विश्व पुस्तक दिवस की विलंबित शुभकामनाओं सहित .....

मुट्ठी भर ज़िन्दगी फ़िसल रही
हथेली पर बची कुछ छल रही |
गर्द खाती पुस्तकें ले हाथ
विचारों की बस्ती उछल रही ||

@संगीता श्रीवास्तव सुमन

Saturday, 18 April 2020

*चंँद अश'आर आज के लिए* ...


आग ने भी आज़माया देर तक
पेट को खाली जलाया देर तक |

इश्क़ ने खुद को सजाया देर तक
चाँद फिर छत पर न आया देर तक |

काठ के उल्लू भी जाने जागना
वक्त ने करतब दिखाया देर तक |
@संगीता श्रीवास्तव 'सुमन'

Monday, 13 April 2020

एक ग़ज़ल आप सब की नज़्र

ग़ज़ल .....

किसी के दिल का जहाँ न होगा
कि राज़ जब तक इयाँ न होगा ||

न ये ज़मीं आसमाँ न होगा
जो प्यार का गुलसिताँ न होगा ||

क़दम क़दम पे हैं मुश्किलें सौ
जो मुड़ गये आशियाँ न होगा ||

उसी किनारे पे जा लगेंगे
जहाँ खड़ा पासबाँ न होगा |

न हो सकेंगे किसी सफ़र के
जो साथ में हमज़बाँ न होगा |

यक़ीन जो दरमियाँ न होगा
कोई यहाँ शादमाँ न होगा |

वफ़ा की राहों के हम मुसाफ़िर
कि देखिए कद्र-दाँ न होगा ||

है उनकी आँखों में साफ़ लिख्खा
'सुमन' कोई दरमियाँ न होगा ||

@संगीता श्रीवास्तव 'सुमन' 

Saturday, 11 April 2020

मौत का हिसाब .....

लोग जब
घरों में कैद हों
ऐसे समय में
बिल के भीतर
छुपे हुए चूहे
बाहर निकल कर
टहलने की
कोशिश कर रहें हैं

शाम को घोसलों में लौटने वाली
चिड़ियों का दल
चुपचाप
पेड़ की टहनियों पर बैठ जाता हैं
उदास चिड़िया
पश्चिम की ओर
चोंच कर के
चहचहाती है

हवा कभी ठहरती है
कभी बहुत तेज बहती है
हवा का रुख़
कोई नहीं
पहचान पा रहा है

और तो और
साँप एकजुट होकर
मंत्रणा करने लगे हैं
कि, उनके दांतों की नसों में भरा विष
सूखने लगा है

यमराज और चित्रगुप्त चिंतित हैं
मौतों का हिसाब
कैसे रखा जायेगा ????

संगीता श्रीवास्तव

Tuesday, 7 April 2020

कविता तुम जीवन हो



तुम कहना 
तुम लिखना
कल औरआज के पन्नों पर 
नदी की धार जैसा 

समय के कपाल पर 
तुम लिखना जो नहीं लिखा गया 

कविता तुम्हारी साँस 
अवरूद्ध नहीं होनी चाहिए
तुम साँस रोककर भी जिंदा रहना 

हड्डियों में 
श्वांस तंत्रों में 
क्योंकि तुम ही 
जीवन हो 
तुम ही चेतना हो

एक आहट...

ग़ज़ल......

करनी नैया पार समझ लो 
मौजों को पतवार समझ लो |

ग़म की शाम अगर है गहरी,  
खुशियों का इतवार समझ लो |

ख़ून पसीना बहाने वालों 
क़िस्मत का इज़हार समझ लो |

लुत्फ़ यहां लो खट्टा मिठ्ठा  
अनुभव को आचार समझ लो |

ख़्वाब सजाना तेरे मेरे
आंखों का अधिकार समझ लो | 

कोई निशां नहीं छोड़ा है
क़ातिल को होशियार समझ लो |

साथ चलो अब मिलकर पग पग
समय की इसे पुकार समझ लो |

इज़्ज़त की रोटी की ख़ातिर 
मर मर जाना प्यार समझ लो |

जो गमख़्वार न मीत मिले तो
दुश्मन को ही यार समझ लो |

आशिक़ हो तो ज़ख़्म छुपाओ,
इश्क़ का शिष्टाचार समझ लो |

गुम आँखों में अश्क़ हुए हैं
सुमन इसे मझधार समझ लो |


@संगीता श्रीवास्तव 'सुमन'